त्रिलोक चंद   (त्रिलोक चंद)
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लिखना सीख रहा हूं
Joined 29 September 2018


लिखना सीख रहा हूं
Joined 29 September 2018

लगता है कि रौनक आ जाती है।



लगता है कि जिंदगी चली जाती है।

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गिनी हुई सांसे भी आदमी
खींच कर लेने लग जाता है।
जवाबदारियों का बोझ जब,
कंधों को झुकाने लग जाता है।

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हो सकता है कि Electoral Bonds में बहुत सी कमियाँ हों, लेकिन ये भी पहली बार हुआ कि सबको पता चल रहा है कि पैसा कहाँ से आया..? बाकी पारदर्शिता के नाम पर अभी उछलने वाले ये लोग उस समय कहाँ थे जब सब कुछ 'नकद नारायण' से ही मिल रहा था..?

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एक विदेशी समाचार पत्र ने लिखा है कि वर्तमान सरकार ने पाकिस्तान में बहुत से आतंकियों को मरवा दिया..! तो प्रथम तो ये कि उस समाचार पत्र को इस पर कुछ भी कहने का अधिकार नहीं, द्वितीय ये कि यदि ऐसा सही में हुआ भी हो तो हमें कुछ त्रुटिपूर्ण नहीं लग रहा है। यदि आवश्यक हो तो सरकार आगे भी ऐसा करती रहे, देश की अखंडता और सम्प्रभुता उससे अधिक महत्वपूर्ण है।

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प्रबल प्रेम के पाले पड़कर, प्रभु को नियम बदलते देखा।
उनका मान टले टल जाए भक्त का मान ना टलते देखा।

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होली पर स्वयं से एक प्रश्न अवश्य पूछना:
आप रंग बदलने वाले हैं या किसी के जीवन में रंग भरने वाले..?

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जिस प्रदेश में 'मोहब्बत की दुकान' खुली उसमें आप अपनी ही दुकान में हनुमान चालीसा नहीं बजा सकते हैं.!

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जब झूठ सर पर चढ़ जाता है।

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मणिपुर पर चिल्लाने वाला विपक्ष और संचार तंत्र सन्देशखाली पर चुप्पी साधे बैठा है और ऊपर से निष्पक्षता का ढोंग करता है!

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प्रतीक्षा रहती है
उसके जवाबी
खत की।

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