सुनते तो सब हैं राज़दाँ,
मगर हर कोई समझे,
ये ज़रूरी नहीं...
और जो समझते हैं हमको,
उन्हें सब-कुछ बताना,
भी ज़रूरी नहीं ।।
मिलने की बातें तो सभी करते हैं,
पर हर कोई वादे निभाए,
ये ज़रूरी नहीं...
और जो वाकई मिलना चाहते हैं,
उनके लिए कोई बहाना होना,
भी ज़रूरी नहीं ।।
पैग़ाम तो सबको मिलते हैं,
सब पढ़े, या खोलने की ज़हमत भी करे,
ये ज़रूरी नहीं,
और जो आँखें पढ़ लेते हैं,
उनको कोई पैग़ाम लिखना,
भी ज़रूरी नहीं ।।
-