वजह बताते थे सबकी गद्दारी का,
हर बात बताते थे दुनियादारी का,
फिर भी हमको तुमसा गद्दार मिला,
मारे पीठ पर खंजर ऐसा यार मिला।
हम भी वो सब कह सकते है, जो तुम कहते हो,
जड़ काटकर पेड़ की, जल उसमें फिर भरते हो,
फिर भी हमने तुम जैसे को पाला है,
वो परवरिश तुम्हारी थी, हम ने सिर्फ मानवता को संभाला है।
तुम बड़े होकर भी, बहुत दिल के छोटे हो,
हो कितने भी पढ़े लिखे मगर दिल के खोटे हो,
फिर भी हम ने तुम्हारी हर बात मानी है,
तुम को लगता है हम कितने नादानी है।
ध्यान रहे प्रिय हम ने तुमको, हर मौक़े पर मौके दिए
सुधारों गलती अपनी, हर बार माफ़ी मांग लिए,
फिर भी तुमने हर बार खुद को शर्मशार किया,
मेरे दोस्ती को तुमने हर बार दागदार किया।
हो सके तो एक बात आखिरी मान लेना,
कर्म से ही होती है इंसान की पहचान ये जान लेना।
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