उनके उन्स की नवाज़िश में,
बा दस्तूर मुन्तज़िर होना छोड़ दिया,
बढ़ी थी क़ुरबत रूहानियत से,
बा दस्तूर इज़्तिरार होना छोड़ दिया,
उनके वस्ल-ए-सहर के इसरार में,
हमने बाद-ए-सबा में चलना छोड़ दिया,
उस रिबायत से मुख़्तलिफ़ हुए हैं जब से,
हमने हर कशिश पर एतमाद करना छोड़ दिया।।
-@तन्मय माहेश्वरी।
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