खुशियाँ ऐसी हो कि अश्क़ों में भर आये,
ग़म ऐसा हो कि आदमी रक़्स करता नज़र आये ।।
ये कौन है आयने में जो यूँ देखता है मुझको,
हँसते-हँसते खामखाँ मेरे ज़ख्म उभर आये ।।
ये वक़्त कमबख़्त गुज़रता क्यों नहीं,
इंतिज़ार में तिरी हर इंतिहा से गुज़र आये ।।
तमन्नाएँ चल पड़ी सब अपने-अपने रस्ते हैं,
ए सुकूं! तू अब तो लौट कर मेरे घर आये ।।
हो गए बरी तुम दिल चुराने के ज़ुल्म से भी,
इल्ज़ाम सारे के सारे मिरी निग़ाहों के सर आये ।।
बड़ी मनमानी की तूने मेरे ख़यालों की राहों मे,
लिखूँ ग़र इश्क़ तो तेरा अक्स उतर आये ।।
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