तड़प इन 'निगाहों' की समझेगा कौन
जो मुद्दा है बाजार , बन बैठा 'मौन'
किराये का गम है , किराये की खुशियां
नही जानता कब 'गिरे' कितना कौन
नई उम्र का सब 'तजुर्बा' है चाहे
बुढ़ापे में 'सठियाई' , है सारी कौम
अरे वाह रे... क्या तसल्ली है पाई
तबाही के दिल का , नज़रिया है 'मौन'
नज़रिया न बदलोगे , फब्ती कसोगे
जो घर मे तुम्हारे वो 'गरिमा' है कौन
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