घटती जाती उम्र है, जन्म दिवस के साथ । छोड़ न दें जग मोह में, अपने रब का हाथ ।। अपने रब का हाथ, बनाता जीवन सुखमय । आती-जाती श्वास, रखें मन रब में तन्मय ।। छोटे मुख से बात, बड़ी मैं सदा बताती । जन्म दिवस के साथ, उम्र भी घटती जाती ।।
समाज क्षणभंगु तब हो जाता है... जब कोई हमसे झूठ बोल जाता है...! इंसानियत भी तभी समाप्त हो जाती है... जब कोई किसी के दु:ख पर ठहाका मार कर हंस जाता है...!
कई बार दुःख तो बहुत होते है पर उनके कारण नहीं... कई बार अनायास ही मन निराशा के घोर अंधकार में लिप्त होने लगता है.. कई बार निश्चित होना अनिश्चितता की ओर अग्रसर सा लगता है.. कई बार जीवन की असीम अभिलाषाएँ ही जीवन का ह्रास करने लगती है...