QUOTES ON #हिंदीकविता

#हिंदीकविता quotes

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15 MAY 2020 AT 18:40

जपा है जब से अल्लाह-राम
शेष विशेष नहीं कुछ द्वेष
शेष विशेष नहीं अब काम।

हज़रत - मरियम - सीताराम
परहित करना इक संदेश
निर्धन कुटिया मक्का-धाम।

ईश्वर - अल्लाह इक का नाम
मंदिर - मस्जिद कहाँ कलेश
सब उसकी है धरा तमाम।

नानक, ईसा, राधा - श्याम
कब था इनको क्रोधावेश
गंगा करूणामय अविराम।

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12 MAY 2020 AT 20:03

कविता बनाने की विधि


कल्पना की हाँडी
अतीत के चूल्हे पर रखिए,
धीमी आँच पर मन जलाइये...

शब्दों को डालकर...
पंक्तियों के चम्मच से
हिलाते रहिये!
भावों की सुगन्ध लीजिए!
कुछ और शब्द डालिए...

कविता तैयार हो रही है!

सावधानी: मन की आग बहुत अधिक न हो, इससे कविता नष्ट हो सकती है

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25 MAY 2020 AT 19:13

न करुणा न त्याग
न दया न सद्भावना
न पवित्रता न सत्यता
न व्रत न समर्पण
है मन में...

तब मन की वह भावना
जो 'प्रेम' लगती है
'प्रेम' नहीं हो सकती,
हो सकती है तो केवल
भ्रांति...
हो सकती है तो
केवल वासना औ' स्वार्थ!

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16 MAY 2020 AT 15:23

अनुभव-अनुभव पढ़ रही हूँ जीवन को मैं,
घटना-घटना जीवन भी गढ़ रहा है मुझे।

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19 MAY 2020 AT 2:48

अच्छा लगता था मुझे
तुम्हारा ऊंची डालियों से
मेरे लिए
शहतूत तोड़ना,

बारिश में
तुम्हारा ही छाता पकड़ना,
मचान से किताब उतारना,
अच्छा लगता था।

मैं नारीवादी हूँ,
अखरता है मुझे
पुरुष का ऊँचा कद,

फिर भी अच्छा लगता था
कभी-कभी मुझे
मेरा तुमसे छोटा रहना...

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29 MAY 2020 AT 5:26

कितना कुछ टूटा हुआ
कलम से बुहारता है एक कवि!
तब जाकर पन्ने पर
कविता उतारता है एक कवि!

मन को टटोलता है,
शब्द भावों से तौलता है,
सृष्टि के कितने पहलुओं
पर बोलता है एक कवि!

जीवन की जटिल गुत्थी
कविता-दर-कविता
आजीवन खोलता है एक कवि...

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17 MAY 2020 AT 1:57

मेरे चले जाने के बाद
मेरे कमरे से
इंतज़ार की धूल में सनी
एक डायरी मिलेगी तुम्हें!

जिसकी एक अधूरी कविता
कहेगी तुम्हारे कानों में
मेरे अधूरेपन की कहानी...

मेरी अन्तिम इच्छा को,
पढ़ कर उस कविता को,
पूरा कर देना तुम!
मेरे चले जाने के बाद!

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11 MAY 2020 AT 11:48

आकाश की थाली पर लाली चमक रही है,
पाखड़ के झुरमुटों में बुलबुल फुदक रही है,
कुछ शेष रह गयी हैं नभ में मयंक-रश्मि
अभी बीतने में रजनी विलम्ब कर रही है।
उषा सँवर रही है।।

लो! चंद्रमा ढिबरी की ज्वाला घटा रहा है,
कोकिल हो मग्न वृक्ष में गाना सुना रहा है,
आलोक लोक में अब बढ़ता ही जा रहा है,
अंधकार की गोदी में किरणें बिखर रही हैं।
उषा सँवर रही है।।

तारों की कणिकाएँ विलुप्त हो रही हैं,
क्षण-क्षण में जैसे इक-इक ये सुप्त हो रही हैं,
क्या चोर हो गई है देखो तो यह विभारी
चुन-चुन के वज्रमणियाँ झोली में भर रही है।
उषा सँवर रही है।।

पर्वत शिखा पर जैसे सिंदूर गिर रहा है,
लता के तंतुओं पर दानु भी पिर रहा है,
क्या अर्क का धरा से विवाह हो रहा है
धारण किये मालाएँ धरती निखर रही है।
उषा सँवर रही है।।

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18 MAY 2020 AT 6:22

मेरी हर कविता
जो तुम पर कही मैंने
अधूरी ही रही,

लिख नहीं पाई मैं
तुम-सी सरस, सरल
परिपूर्ण कविता!

तुम इतने पूर्ण हो
या तुम्हारे अभाव ने
मुझे अपूर्ण कर दिया है!

क्यों सामर्थ्य नहीं मेरे शब्द में
तुम्हें कहने की?

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20 MAY 2020 AT 20:23

संगिनी हो गई है मेरी
नन्ही-सी एक चुहिया...

(अनुशीर्षक में पढ़ें)

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