ज़ैनब ख़ान   (ज़ैनब ख़ान 'साज़')
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Joined 2 May 2018


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15 FEB 2022 AT 23:48

कम होते हैं जो प्रेम करते हैं
उससे भी कम निर्वहन कर पाते हैं प्रेम।

पढ़े-लिखे कविताएँ भर लिखते हैं प्रेम की
भोले और नासमझ ही समझ पाते हैं प्रेम
प्रेम को वर्ण-अक्षर-शब्द नहीं लगते
इसलिए तो बे जबान भी पढ़ पाते हैं प्रेम।

परचून की दुकान-सा हरेक मोड़ पर
मिल नहीं पाता है प्रेम,
इसलिए तो प्रेम 'प्रेम' कहलाता है
परचून की दुकान नहीं कहलाता है प्रेम। — % &

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8 OCT 2020 AT 19:01

ईश्वर को आंकनी थी
ब्रह्मांड की सीमा...

अतः उसने प्रेम को रचा।

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30 DEC 2021 AT 15:46

फूलों-सी नज़ाकत है, ख़ारों में पली हूँ।
सहरा में खिली हूँ मैं वो सब्बार कली हूँ।

मुझपर सुकून की कभी बारिश नहीं हुई,
मैं मेंह की तलबगार हूँ,शबनम की जली हूँ।

क़द मेरा घटाते रहे ये धूल के ग़ुबार,
बढ़ती रही हूँ मैं कि मैं फूली हूँ फली हूँ।

क्यों कर डराइये मुझे दोज़ख के नाम से,
मैं तो क़दम-क़दम में पुलसरात चली हूँ।

गोया कि मैं औरत का कोई और रूप हूँ,
कुम्हला गई है वो भी और मैं भी जली हूँ।

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5 DEC 2021 AT 20:05

तेरे माथे पे ये आँचल बहोत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल का एक परचम बना लेती तो अच्छा था।
-मजाज़

घरों के तो चिराग़ों को संभाला है बहोत तूने
तू एक लौ अपने दिल में भी जला लेती तो अच्छा था।

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30 OCT 2021 AT 20:38

मैं खुशनसीब हूँ मैंने देखा था गाँव को,
पीतल-सी धूप को, पीपल की छाँव को,

कितने हसीन थे मेरे बचपन में सवेरे,
चुँधयाती दुपहरी और गहराते अंधेरे,

याद है बसन्त की फूलों की बहारें,
रेते में खेलना मेरा कोसी के किनारे,

बागों में रंग-बिरंगी चिड़ियों का फुदकना,
बरसात की रातों में बिजली का चमकना,

कितनी सुहावनी हुआ करती थी धनक तब,
गुल्लक में इकट्ठे हुए सिक्कों की खनक तब,

ढिबरी, चिराग़, मुर्रमुरे, छोटी-सी फुलझड़ी,
होती थी दिवाली भी मियाँ ईद से बड़ी,

भूली नहीं जाती हैं उस दौर की वो बातें,
पापा की नसीहत, बचपन की वो यादें।

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27 AUG 2021 AT 18:28

अगर जाऊँगी तो किधर जाऊँगी मैं,
तुझे ढूँढती दर-ब-दर जाऊँगी मैं,

मेरे हमसफ़र तू मेरी ज़िन्दगी है,
जो खोया कभी तू तो मर जाऊँगी मैं।

तेरा साथ है जो समेटे हुए है,
बिछड़ जाऊँगी तो बिखर जाऊँगी मैं।

मेरी मौत तेरे लिए ज़िन्दगी है,
चल इस बात पर आज मर जाऊँगी मैं।

मुकम्मल नहीं ये कहानी तो क्या ग़म,
मुकम्मल मुहब्बत तो कर जाऊँगी मैं।

मिटा तो मैं दूँ तेरी हर याद दिल से,
मगर अपनी नज़रों से गिर जाऊँगी मैं।

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14 JUN 2021 AT 17:36

मेरे दिल की जो हालत है, ये सब तेरी बदौलत है
दफ़ा होती नहीं दिल से, मुझे बस ये शिकायत है।
मुहब्बत तुझसे नफ़रत है।

ख़ुदाया क्या मुसीबत है, के रातो-दिन क़यामत है
बहुत सोचा के जी लेंगे, मगर मरने की नौबत है।
मुहब्बत तुझसे नफ़रत है।

तेरी पहले की आदत है, हरेक दिल से अदावत है
जो दिल से इश्क़ करता है, उसी की जान आफ़त है।
मुहब्बत तुझसे नफ़रत है।

मैं जीती हूँ तो तोहमत है, जो मर जाऊँ तो शोहरत है
तलातुम-दर्द-रुसवाई, यही तेरी हक़ीक़त है।
मुहब्बत तुझसे नफ़रत है।

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30 APR 2021 AT 0:45

हम लोग हैं भारत के!

गिरे भी हैं टूटे भी हैं
फिर संभले हैं
फिर आगे बढ़े हैं,

न संघर्ष निगल सका हमें
न इतिहास मिटा पाया है,
वक़्त की लहरों से
सदा टकराते

हम लोग हैं भारत के!

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29 APR 2021 AT 3:57

मैं एक पत्थर मेरी ख़ता क्या
ख़ुदा बनाया क़ुसूर तेरा।

न मोजज़ा मैं न मैं करिश्मा
ये मोजज़ा है ज़रूर तेरा।

तू ही दुआ है तू ही असर है
तुझे चढ़ा है फ़ितूर तेरा।

मुझे सँवारा मुझे सजाया
मुझे मिटाया ग़ुरूर तेरा।

तू जीत जाए या हार जाए
या सीख जाए शऊर तेरा।

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28 APR 2021 AT 2:37

ख़ुद की आँखों को तो इक ज़र्रा रुला देता है,
ग़ैर की आँख का आँसू भी मगर पानी है।

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