इतेफ़ाक से मिलते-मिलते जाने कब तुमसे 'वो मुलाक़ात' हो गयी, मुलाक़ात करते-करते जाने कब तुमसे 'वो बात' हो गयी बात होते-होते जाने कब तुम 'मेरे जज़्बात' हो गयी जज़्बात बनते-बनते जाने कब तुम मेरी 'हर रात' हो गयी
अब हर रात भी तुम हो ख़्वाब-ओ-ख़्यालात भी तुम हो
मेरी सारी ज़िन्दगानी मेरी रवानी मेरी कहानी भी तुम हो - साकेत गर्ग
मैं हर रात यह सोच कर सोता हूँ मैं तुम्हें आने वाली सुबह तक भूला दूँगा और फ़िर हर सुबह यह सोचकर डर जाता हूँ कहीं तुम मेरे ज़हन से निकल तो नहीं गए यह क्षणिक सोच में तुम्हें खो देने का डर ही प्रेम है..!!
तेरी ही बाते करती हैं मुझसे हर रात। तेरी ही आवाज़ कानो में गूँजती हैं मेरे हर रात। तेरा ही अक्स उभरता हैं आँखो में मेरी हर रात। वो ही तु हैं ओर वो ही मैं हूँ। जो मिल के भी मिल नही पाते हर रात।
यूँ तो अनजानी सी है ये बात , दिल में मचे हुऐ है जज़्बात । मिली जब गम की सौगात , मिली तेरे प्यार की बरसात। चाहता हूँ एक और मुलाकात , अब तेरी यादों में बीतेगी हर रात ।