Anil Mishra  
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Joined 15 October 2020


Joined 15 October 2020
27 APR AT 15:10

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

खुशियों की सौगातें लेकर आए बहारें
मुख पर आपके सदा हो हंसी के फव्वारे
आशा कि रोशनी का साथ रहे हमेशा
सुख और समृद्धि आती रहे आपके द्वारे

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6 APR AT 19:09

कब तलक चलेंगे जाने ये चराग़ों के सिलसिले,
शब-ए-इन्तिज़ार आखिर मुख़्तसर क्यों नहीं होती..

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5 MAR AT 12:15

कुछ अमानतें वो तेरी
अभी बाकी हैं सीने में
कभी आओ तो ले जाना.

मुलाक़ातों का वो मौसम
मिलन ,के कुछ बहाने हैं
कभी आओ तो ले जाना.

हसीं शामों के वो साये
वो खिलती, चांदनी रातें
कभी आओ तो ले जाना.

वो कुछ उठते हुऐ सवाल
फिर तेरा बिछड़ जाना
कभी आओ तो ले जाना.

बिखरे ख़्वाबों के टुकड़े
चिढाती हुई कई यादें
कभी आओ तो ले जाना.

तकिये में सलामत है
वो ख़ुशबू ,तेरे बालों की
कभी आओ तो ले जाना ..

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24 FEB AT 17:44

वो हमारी पहली मुलाक़ात ,की कश्मकश
वो दोनों,के हसीन ख्यालों का प्रथम स्पर्श
वो हम ,दोनों के दिलों ,का हसीन स्पंदन
सच बताओ..... क्या भूल पाओगी तुम
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वो बड़ा, खुशनुमा ,सा सान्निध्य, अपना
वो कभी ना बिछुडने का हसीन सपना
वो जरा सी जुदाई पर छुप छुप के कृंदन
सच बताओ ...... क्या भूल पाओगी तुम

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19 FEB AT 19:13

वो थी इंग्लिश बोलने में तेज़
हम थे इंग्लिश पीने में तेज़

नशा दोगुना हो जाता था मेरा
जब पकड़ी जाती थी मेरी इंग्लिश
और सुनने को मिलती थी उसकी इंग्लिश

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14 FEB AT 12:42

फिर से ले चल ए शब बिछडी हुई राहों में तू
कि वो पुरानी सी यादें जाने कब से ढूॅंढती हैं..

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13 FEB AT 13:52

तेरा पता जो मिले तो तुझे ख़त लिखूॅं
किस हाल मैं जी रहा हूॅं वो हक़ीक़त लिखूॅं

अब तो खुशियों का भी मैं हकदार ना रह गया
तेरी यादों के ज़ख़्म की अक़ीदत लिखूॅं

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11 FEB AT 12:48

* आप सभी से एक राय लेनी थी *
इस मंच पर एक महाशय ने मुझे दो तीन पहले फोलो करना शुरु किया .. उन महाशय के क्रिया कलाप मुझे पसंद नही इसी कारण मैं नही चाहता हूं की वो महाशय मेरी फॉलोअर्स लिस्ट में मौजूद रहे.... इसी कारण मेने उनको चार पांच बार रिमूव कर दिया लेकिन वो बार बार मुझे वापस बार बार फोलो कर रहें हैं..
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अब मुझे क्या करना चाहिए उन महाशय का 🤔🤔

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1 FEB AT 21:05

तुम कलम की स्याही "प्रिये"
मैं कोरा कागज़ कहलाता हूॅं
तुम दिल के जज़्बात लिख जाती हो
और मैं पूरा हो जाता हूॅं

तेरी हसीन यादों के सिरहाने बैठ कर
जब भी मैने कुछ लिखना चाहा है
लफ्ज़ भी मेरे उलझे उलझे रहे
और कागज़ भी तो देखो कोरे रहे

आज दूर आकर पलट कर देखा
कागज़ धुंधला रह कर मुझ से बोला
विलीन हो जाने दो उन अल्फाज़ से
यादों के सफ़र में कोरा का कोरा ही सही

जब प्रीत का रंग चढ़ा तुझ से
मोहब्बत का देखो आगाज़ हुआ
उलझे उलझे अल्फाज को भी
प्रेम के एक सूत्र का धागा मिला

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1 FEB AT 11:05

तू मुझमें समाई है दिल की गहराइयों में कहीं,
तूझसे लगाव का हाल मैं किस तरहां बयां करूँ..

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