मर्जी से जीने की बस ख्वाहिश की थी मैंने... और वो कहते हैं कि खुदगर्ज बन गये हो तुम... धड़कता था कभी दोनों का दिल एक दूजे के लिए अब काँपता है सिर्फ मेरा दिल उसके लिए मेरी नाकाम मोहब्बत मुझे वापस कर दी उसने कुछ यूं मेरे हाथ मेरी लाश थमा दी उसने ज़िद की कुछ यूं इंतेंहा कर दी उसने ठुकराकर मेरी मोहब्बत मुझे ज़िंदा लाश कर दी उसने अब ना गम समझ आता है ना खुशी कुछ यूं मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी उसने जाने किस लहर के हिस्से में होगी अस्थियाँ हमारी जाने नदी का कौन सा प्रवाह मुझे किनारा देगा जो लोग हमे भूल जाते हैं, हम उन्हें कभी भूल नहीं पाते है...!