कानों में झूमका,आँखों में काजल,पैरों में पायल,
जनाब! क्या सब सादगी
'बनारस' में चाहते हो।।
यूँ तो महबूबा की यादों में
अपनी बैचेनी लिखते हो,
जनाब! क्या अस्सी घाट का
सुकूँन पाना चाहते हो।।
रास्तों में भटकें हो तुम अपनी प्रेमिका से मिलने,
जनाब! क्या बनारस की गलियों
की आवारगी देखना चाहते हो।
आफताब भी है, और मेहताब भी,
मन्दिर भी है और मस्जिद भी,
बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई भी है,
और तुलसी के छंद भी।
चाय भी है,और पान भी,
साडी़ भी है, और गंगा भी।
जनाब! क्या नहीं देखना चाहते हो,
शिव नगरी 'बनारस' को।।
Vandana jangir
-