आजकल,
जिस उम्र में ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित होना चाहिए,
उस उम्र में बच्चों के दिल टूट रहें हैं,
जिस उम्र में हमें प्यार का मतलब पता नहीं था,
उसपर आज के बच्चे पूरा कोर्स कर चुके हैं,
ख़ैर, प्यार के खिलाफ नहीं हैं हम,
पर "ये जो प्यार है, क्या सच में प्यार है?"
शराब, सिगरेट जैसे नशे को अपनी शान समझ रहें हैं,
मार-पीट, गालियां इनकी शोभा बढ़ा रहे,
और इसपर इन्हें गर्व महसूस होता है,यही नहीं,
ये मोबाइल पर क्या कर रहे? ख़ैर ये तो सभी जानते हैं,
और अगर इस बारे में बात करो किसी से तो सबका एक ही कहना है,
"समाज ही ऐसा हो गया है क्या करें।"
क्या सच में? यदि ऐसा है तो मुझे बताइये कि
"समाज" कैसे बनता है?
कहते हैं, "बच्चें देश का भविष्य है।"
क्या सच में?
अगर ऐसा है, तो ख़ुद समझ जाइये कि,
हमारे देश का भविष्य किस तऱफ अग्रसर हो रहा है।
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