लिख दी हैं.. के क्या- क्या बिता राह-ए-मुहब्बत में
वो मैंने.. सारी बातें लिख दी हैं,
जो ख़ैरात में उसने दी थी मुझे
वो उसकी सारी सौगातें लिख दी हैं,
जो क़भी... शिक़ायत थी मुझे बारिश से
के वो शज़र क्यूँ पीछे छोड़ दिया,
और सूखे पत्तों सा जो मुझे वहा के ले गईं
वो सारी.. काफ़िर बरसातें लिख दी हैं,
हाँ.. गढ़त थे कई भाव मेरे
कई कल्पनायें थीं.. अविकल सी,
के.. जो उससे क़भी हुईं नहीं
हाहा..हा.. वो मुलाकातें.. भी लिख दी हैं,
पर कैसे कह दूँ के जुगनू वो सारे मिथ्या थे
निकले थे जो बेरन रातों में,
और अंधेरों में जो साथ चले
वो सारी... तारों की बारातें लिख दी हैं,
हाँ.. दिन अभी भी हैं बंजारे से
उसकी ज़ुस्तज़ु.. में जो.. गुजारे थे,
बाकी.. उसके ख़्वाबों में जो बीत गयीं
वो सारी.. तन्हा.. हिज्र की रातें लिख दी हैं !!!
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