अपने घर के दरीचे में बैठ,तेरे यादों
के सर्द रातों से घुल मिल रही हूं,
देख मेरे हमदर्द मैं अपने मन
में तेरे ख्यालों के स्वेटर बुन रही हूं,
यूं तो मुसलसल तेरा आना- जाना बना रहता है
इस दिल में,पर अपने जिन्दगी के धागे में,
तेरे यादों के मनके पिरो रही हूं,
मेरे दिलबर तुम बिल्कुल साज- ए- संगीत से लगते हो,
थोड़ी- थोड़ी तुम्हारे धुन को मैं,खुद में सुन रही हूं,
" सोना" सजर से गुल तोड़ना मुझे
आता नहीं है,पर तेरे इश्क़ में मैं चांद
तारे तोड़ने के सपने बुन रही हूं,
और क्या सबूत चाहिए तुझे मेरे
इकबाल- ए- मोहब्बत का,
इतना काफी नहीं, कि मैं तेरे दिल
कि धड़कन को, खुद में सुन रही हूं,
सोनम साहू...
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