बादल से गिरी जो बूंद गर्मी से तपती धरा के लिए प्रेम है.... वही बूंद सर्दी से ठिठुरती ओस की चादर में लिपटी धरती के लिए 'औषधि'... ....और औषधि सदैव मीठी ही हो ऐसा आवश्यक तो नहीं !
[गर्मी में बढा अभिमान] गर्मी का महीना था लोग बगीचों में आते था मुश्किल से जीना था, फिर भी साथ पंखिया लाते थे फिर भी पतानहीं क्यों मेरा दिन-भर में 4-6 बार नहाते थे गर्व से उठा सीना था कभी-कभी खाना नहीं खाते थे जबकि बह रहा पसीना था।। फिर भी पतानहीं क्यों मेरा तपन से फूल नहीं खिलते थे गर्व से उठा सीना था बिछड़े यार नहीं मिलते थे जबकि बह रहा पसीना था।। पेड़ों के पत्ते नहीं हिलते थे सबने मुझसे इतना कहा दर्जियां कपड़े नहीं सिलते थे कुछ काम कर मस्त हो जाएगा फिर भी पतानहीं क्यों मेरा बैठने से जिंदगी पस्त हो जाएगा गर्व से उठा सीना था फिर भी पतानहीं क्यों मेरा जबकि बह रहा पसीना था।। गर्व से उठा सीना था जबकि बह रहा पसीना था।। -Abhishek tiwari[ #कवि]
-
Fetching #गर्मी Quotes
Seems there are no posts with this hashtag. Come back a little later and find out.