Seema Katoch   (S katoch (बूंदें))
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Lecturer Physics
कृपया पढ़ कर ही लाइक करें🙏🙏🙏
Joined 23 July 2020


Lecturer Physics
कृपया पढ़ कर ही लाइक करें🙏🙏🙏
Joined 23 July 2020
2 MAR AT 11:54

सांस की हर आहट में तुम
मेरी मुस्कुराहट में तुम
तनहाई के शोर में तुम
तो शोर की खामोशी में भी तुम...
अब कैसे कह दूं,
की मैं तुम्हारे साथ नहीं होती......
जागूं तो सोच में तुम
सो जाऊं तो खवाव में तुम
हर एहसास में तुम
मेरी हर ख्वाहिश में तुम...
अब कैसे कह दूं,
की तुमसे मुलाकात नहीं होती.....
मेरी कविता में तुम
कविता के हर लफ्ज़ में तुम
उसके रस में तुम
तो उसके श्रृंगार में भी तुम
अब कैसे कह दूं
की तुमसे बात नहीं होती

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22 FEB AT 17:09

बरसात में भीगी हुई वो शाम
उसके साथ प्यारी सी वो शाम

मदहोश निगाहों की पनाह में
बहकी बहकी सी थी वो शाम

उफ्फ उसकी बातों का जादू
दहकी दहकी सी थी वो शाम

हर ओर छाया हुआ खुमार
महकी महकी सी थी वो शाम

आज भी भिगोती जिसकी बौछार
बरसात में भीगी हुई सी वो शाम

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20 FEB AT 17:32

एक दौर था वादों का,ख्वावों का
किताब में रखे सूखे गुलाबों का....

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17 FEB AT 20:19

पाने की खुशी मनाता है
न खोने का रोना रोता है
जानते तो होगे तुम
ये पत्थर कैसा होता है

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17 FEB AT 13:21

चाय के साथ - इश्क हो
या इश्क के साथ- चाय हो
बस साथ हो कोई अगर
जनाब तो चाय हो चाय हो






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15 FEB AT 22:58

जिस ख्वाब के लिए तुम्हें भटकते देखा है
उम्मीद की डाली पर उसे लटकते देखा है।

इन नाजुक फुलों को अक्सर
वक्त की गर्मी से चटकते देखा है।

पूनम के चांद की हसरत में
समंदर को सिर पटकते देखा है।

मांझी न मिले मन का अगर
जीवन की नैया को भटकते देखा है।

शाख से टूटे हुए पत्तों को
गंदी नाली में अटकते देखा है।

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15 FEB AT 18:46

एक दीया तम हर जाता है
कतरा ही समंदर बन जाता है।
गर हसरतों के पंख हों साथ
आसमां भी जमीं नजर आता है।।

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14 FEB AT 23:05

वक्त अवलंब या अवरोध

कभी वो मिला
महफिल में
मुस्कुराते हुए,,,
हाथ पकड़ साथ बैठा
हक जताते हुए,,,

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14 FEB AT 22:44

वक्त अवलंब या अवरोध

घड़ी की घूमती सुइयां
भ्रम हैं,वक्त का,,,

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9 FEB AT 13:13

राज़ ए दिल कहां कह पाते हैं हम।
कुछ सोच के बस रह जाते हैं हम।।

कहीं हो न तुम्हारी दिल्लगी ये भी।
दिलकी लगी बस सह जाते हैं हम।।

तेरी आंखों के इस गहरे समंदर में।
तिनका बन बस बह जाते हैं हम।।

कहना तो चाहते हैं दिल का हाल।
कुछ और ही बस कह जाते हैं हम।।

तुम बनते हो अंजान सब जान के।
सितम ये तेरा बस सह जाते हैं हम।।

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