न जाने कैसे तुम से, यह 'मोहब्बत' सी हो गयी
नहीं संभल रहा दिल, अब 'हो गयी तो हो गयी'
दिल ढूँढता है तुम्हें, हर दर-सहर-शब 'पल-पल'
लगता है मुझे अब तुम्हारी, 'आदत' भी हो गयी
तुम कुछ कर सको तो, कर के देख लो 'उपाय'
मेरी तो हर एक कोशिश, अब नाक़ाम हो गयी
जो हो जाये तुम से, बस कुछ पल की 'गुफ़्तगू'
मैं ख़ुशनुमा, ख़ुशनुमा सारी 'क़ायनात' हो गयी
जो खोया रहूँ ख़यालो में तुम्हारे, ऐसा लगे जैसे
बिन श्लोक-आयत-वाणी पढ़े, 'इबादत' हो गयी
सुनो ना! सच कह रहा हूँ मैं, मान भी जाओ ना
हाँ मुझे हो गयी! 'सच्ची-मुच्ची', सच में हो गयी
- साकेत गर्ग 'सागा'
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