आईना धुँधला गया है या
तुम्हारा जिक्र फिर आ गया है।
जिस अक्स की तलाश थी मुझे,
वो चेहरा क्यों मुरझा गया है।
ये दिल का सुलगना है या
कोई इश्क की तिली जला गया है?
जिस दिल को पत्थर बनाया था कभी,
उसे फिर से जीना आ गया है।
आईना मुख़तलिफ़ है या
इश्क़ का वो दौर बदल गया है।
जज्बातों के ढेर को दामन में समेटकर,
तेरे इश्क़ का कब्र बनाने आ गया है।
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