एक कानून तो ऐसा हो, जिसमें अपराधी के सभी गैर कानूनी सम्पत्ति, पर अधिकार सरकार का हो? सरकार कब तक आम जनता का खून चुसोगे? अपनी भलाई के लिए अपना ही पैसा, आपको देता एक आम आदमी।✍️
कठघरे में खड़ी मैं रोज ही अपनी अस्मिता पर उंगलियाँ उठती सहती हूँ । माँ कहती है धीरज रखो , कैसे सहूँ प्रतिदिन स्वयं पर बदनामी का कीचड़ उछलते हुए प्रतिदिन तार -तार होती हूँ । मेरा कोई अपराध नही फिर भी समाज में अपराधी बन जीती हूँ । पुनः सहने के लिये वही सब अपने सिसकते हुए अंगों पर प्रतिदिन औषधि रखती हूँ । बस यही कामना मेरी मुझ-सा दर्द न मिले किसी को जिन घावों को मैं सीती हूँ । मेरा कोई दोष नही माँ ! फिर क्यों अपराधी बन जीती हूँ ?