धुंधली सी याद को पीछे छोड़ते देखा है ,
चंद लोगों के साथ बैठकर रिश्ता जोड़ते देखा है।।
आईनें से ना पूछो शराफ़त की दास्ताँ ,
रेत पर कदमों की बनावट बनते देखा है।।
नियती कभी तो कुछ अलग करेगी ,
भविष्य के ज्ञान को परिचय देते देखा है।।
पाकियत से बना रिश्ता धरोहर से कम नहीं ,
इसी प्रेम के बीज को मैंने कभी ना मिटते देखा है।।
सुफियान अंदाज हर अदा को लुभाती है ,
परदे में निखरती खुबसूरती को दफ़्तर -ए- गुल होते देखा है।।
स्वर्ग की नहर इस कदर बढ़ती आ रही चारों ओर ,
देख मिलन की ख्वाइश से ख़ुदा के नज़दीक होते देखा है ।।
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