I see you in me
to see
me in you.-
Unbreakable but breaks people
Untraceable but can find life
Unknown but get strangers close
Unintentional but unites intensely
Untouchable but touches the soul-
बात और वारदात।
तेरी जुल्फ़ों जैसा मुक्त हुआ करता था,
मैं जिन्दगी दर्द को लुफ्त सा भरता था।
लबों पे मेरे जीवन की लाली बिखेरी तुमने,
ऐसे ज़हर भी खुद में कभी मिलाया था मैंने।
जाता हूं अकेले पर लौट आना है तेरे पास,
इस कलम से सफ़र, कापी जैसे जीवन में-
मैं शब्दों को बुनकर तुमसे बात करने आया,
जिन पन्नों पे तुम ना थे, उन्हें चुनकर जलाया।-
एक दांव प्रस्ताव।
कम था सब ग़म मगर संग सहा हर दम,
नम सा अब सफ़र, तय कर रहा हमदम।
कश्ती संभाली मैंने, तुम आना नींद लेकर,
लहर सपने छीन गई फिर से उम्मीद देकर।
जानकर अंजान बन इम्तिहान जारी रहे,
सवाल ही जवाब से, हल भरी पहल कहे-
के जीत के जी ले जिन्दगी-ए-सफ़र मगर,
दांव पे लगा दे, खुद को या तेरा हमसफ़र।-
चाहत की राहत।
कोशिशें, मंज़िले, नाम-ओ-मकाम,
यह राहें, निगाहें रहती रहे गुमनाम।
नहीं आसान, यह दूरी भरी मजबूरी,
नादान रूठें झगड़े, कईं बाते अधूरी।
एक दफा मिलने, तुम आना ज़रूर,
की माफ़ी मांग के मैंने माना कसूर।
मैंने चाहत लिख की पेशकश खुमारी,
राहत बन मेरी, तुमने नज़र है उतारी।-
एक बेखबर हमसफ़र।
जगह नहीं मैं था, कुछ इधर, कुछ उधर,
वजह थी, चैन था, बिखरा सा दर-बदर।
सपने थे मेरे अपने से मैं नींद सी उम्मीद,
कभी पूनम का चांद, कभी दीद भरी ईद।
चौराहा याद है मुझे, ख़्वाबों सा यादगार,
पुरानी राहों फासलों का पुराना राज़दार।
अकेले गुजरता सफ़र मंज़िल ही हमसफ़र,
पर बेखबर चल रहा, हासिल हो राह खबर।-
हर चीज़ अज़ीज़।
इकट्ठा किए हैं मैंने दस्तूर कईं,
कुछ मंजूर, कुछ मजबूर सहीं।
ना लिखें ना पढ़े, बस अपनाए,
ना खरीदे ना लिए, खुद बनाए।
वे आएं संग लाएं, बरसात नईं,
चाहता हूँ छाता, जो साथ नहीं।
रैना बरसे मैं बरस के दोनों बरसाएं-
एक-दूजे को थोड़ा-थोड़ा आगे बढ़ाएं।-
एक घर सफर।
हद सरहद, राहें निगाहें,
डर के दर पे सर रखा है।
अब तेरा ही साया, मेरी परछाई,
जब तुम ना थी तब भी याद आई।
गीले शिकवे कई जो बीते बिताए,
तो तुमने मुझे, ऐसे ख़्वाब दिखाए-
जैसे, मैं चलता रहा तुम थी नहीं,
सुकून से ठहरा जहा तुम थी वहीं।-
सपने और अपने।
उम्मीदों के उस पार अंजाम यह हुआ-
इधर ठहरी नदी; है उधर गहरा कुआं।
मैंने तोड़ा मुझे महज़, थोड़ा उस दिन,
टूटा इस तरह जुड़ना था ना मुमकिन।
नींदों में जुनून सा बिखरा सुकून था,
अतीत मेरे अज़ीज़, चुभन भरी ख़ता।
सहर के संग लौटे जिन्दगी और हम,
सूरज खिलता वहां मिलता यहां ग़म।-
मन और बचपन।
जब खुशियों की सौगात बांटने आ गया मुकद्दर,
मैं बनने लगा, दर्द और तकलीफों का सिकंदर।
मैंने लिखे थे ख़्वाब, कुछ फटे तो कुछ खो गए,
पतंग उड़ाने की उम्र से, मेरे मज़ाक उड़ने लगे।
जब चुन रहें थे लोग, काफ़िले स्वार्थ कपट भरे,
मैंने चुन लिया था बस खुद ही को जिए या मरे।
मेरी चाहत शायद खफ़ा होकर बड़ी हुई मेरे संग,
वह भी मेरे साथ पा रही है अकेलापन बने बेरंग।-