पहचान वाले (14) बाहर निकलने के बाद अंतिमा ने कुछ कहा ही नहीं.. मैं समझ ही नहीं पा रहा था क्या हुआ है.. उन्होंने गाड़ी की चाबी मुझे दे दी.. मैंने सोचा इन्हें पहले इनके घर लेकर चलता हूँ फिर पूछेंगे.. मैं गाड़ी लेकर आया.. अंतिमा गाड़ी पर बैठे.. और मैंने गाड़ी सीधे घर के बाहर रोकी.. उनके हाव- भाव ऐसे थे जैसे जिंदगी रूक सी गई हो.. आंटी ने गेट खोला हम अंदर गए और अंतिमा सीधे कमरे में.. मैंने आंटी जी को कहा आप देखों जाकर क्या हुआ है.. और उन्हें सब कुछ बताया.. आंटी जी अंदर गए कमरे में.. और मैं हॉल में ही बैठ गया.. थोड़ी देर हुईं आंटी जी आए.. बोले बेटा कोई बात नहीं है तुम जाओं.. मैंने कहा पक्का.. मेरी किसी बात का बुरा तो नहीं लगा.. आंटी जी ने कहा ऐसा कुछ नहीं है तुम जाओं और कल खुद ही आकर बात कर लेना.. अब मैं क्या कर सकता था कल का इंतजार ही करना पड़ता.. देखते हैं क्या होता है..
मैंने इस जीवन की ये एक बात अच्छे से समझी हैं, की पैसो से प्यार करोंगे, तो रिशतो को खो दोंगे, और उन तमाम रिशतो से प्यार करोंगे, तो एक दिन खुद को ही खो दोंगे, तो खुद के प्यार करना सीखो।