रात ही है, जो चुपके से चली जाती है,
ढ़ेरो खामोशी मेरे दामन को भिगो जाती है,
ना रोती है ,ना हसती है,
पर मेरे आँसुओं को खुद में दफन कर जाती है,
नहीं, नहीं! उदास नहीं बस खामोश हूँ थोड़ी सी
किसी के आहट को सुनना चाहे मेरा मन चोरी से
पर नजर कोई ना आये हाय! ये चाँद डूबा जाये ,
और फिर सूरज की लाली मुख पर दर्पण सा कर जाती है,
और रात? रात चुपके से चली जाती है।।
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