कभी मैं सागर हुआ करता था, आज सूख चुका हूँ।
देखो तुम्हारी वजह से कई खण्डों में टूट चुका हूँ।
तुम जो भरती थी मुझमें पानी वो प्रमुख नदी थी,
तुम्हारे प्रवाह को मुझ तक जोड़ने में भगवान को लगी सदी थी।
के तुमने जो रूख मोड़ा दूसरी ओर मेरा जल स्तर गिर गया,
मैं रेगिस्तान बनने की प्रक्रिया में मुसलसल घिर गया।
के मैं अब इस रेतीले पहाड़ो वाले मारूथल से ऊक चुका हूँ।
कभी मैं सागर हुआ करता था, आज सूख चुका हूँ।
देखो तुम्हारी वजह से कई खण्डों में टूट चुका हूँ।
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