लिख तू आशा अपनी निराशा का क्या हैं मेरी समझ से बहुत दूर हैं ये क्यू ये अल्फाज़ इतने मजबूर हैं ना हो साथ कलम का तो अंदर ही जेहन में रह सांसों को रोक देते हैं।
एक अरसे बाद आज फिर सिहाई ✒️में भीगा अपने हौसले कों बढ़ाया ख़ुद को खुद ही समझाया हैं। अपने सुख दुख का साथी बनाया हौसला इतना की छु लेना है ये आसमां ✍️ ,कभी लिखे जाने वाले ये रोज़ के ख्याल । आ ही जाते हैं बेवक्त याद
शौक मंजिल का था , तो रास्ते कभी पता लगे नहीं सोचती हूं खुद को तो ढूंढती, ही लेती हूं वजह एक कदम फिर आगे बढ़ जाने को , क्या छूट गया???? किसको खबर क्या पाना हैं ???