कहां जाऊं मैं ना कोई
मेरे जैसा हैं ना कोई समझे मेरी परिस्थिति....
किसे सुनाऊं अपना हाल
यहां तो सब लगे पड़े है परखने मेरी स्तिथि.....
जहां खड़ी हूं
वही बस थम सी गई हैं जिंदगी....
खोयी खोयी सी मैं
कभी कभी हो जाती हैं दुनिया से मेरी गुमशुदगी....
रोज़ खुद को जोड़ती,
फिर बिखर सी जाती हूं....
फिर भी उम्मीदों का,
दामन नहीं छोड़ पाती हूं....!!!!
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