कैसी यह रीत जग ने बनाई!
क्यों पिया की पाती दहेज में समाई?
पिता परेशान सारे जग में फिरता है बस मारा,
जैसे काली घटाएं हो उसके सर पर छाई।
ना दिन को मिलता सुकून, ना रात को आराम।
कलेजा है भरी, सहूँ कितना और अपमान।
यहाँ भी खोजा, वहाँ भी खोजा,
लगा ले कोई अब कोई सस्ता ही दाम।
दे दूँगा हर जमा पूँजी अपनी मैं,
बेटी जन कर हूँ बहुत दुविधा में मैं।
कोई न समझे, कोई न जाने,
जीवन की कैसी हूँ असुविधा में मैं।
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