वो पुराने पेड़ों के जब पत्ते गिरने लगते हैं,
जैसे के कुछ बिगड़े हुए दोस्त सुधरने लगते हैं......
चांदनी की चमक मुझे जब अँधेरे में तकती है,
यूँ भी कभी कभी जमीं पर चाँद उतरने लगते हैं।
वहाँ आसमाँ में इक सन्नाटा कैसे पसरता है,
जब उड़ते हुए परिंदों के ही, पर कतरने लगते हैं।
पास आने के बाद फिर जब दूरियां सी आती है,
आँखों के तारे भी फिर तो, अखरने लगते हैं।
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