क़ैद दिलों को सांसे दे सकूं ऐसी दवाई बनाता हूँ
ख़्याली चाशनी से मैं काग़ज़ पे मिठाई बनाता हूँ,
वहशी सय्यादों से हर परिंदे को बचाया जा सके
मैं अपने अल्फ़ाजों से ऐसी एक रिहाई बनाता हूँ,
दिन सर्द होता है लेकिन मेरी रात सर्द नहीं होती
मैं सर्द रातों में उनकी ख़ुशबू से रज़ाई बनाता हूँ,
वो हयादार इतनी है कि पड़ जाते हैं नक़्श लाल
मैं हथेली चूमके उनके चेहरे पे हिनाई बनाता हूँ,
आदाब-ए-इश्क़ में हवस कि गुंजाइश नहीं होती
मैं तसव्वुर में भी ढोलक और शहनाई बनाता हूँ,
'आमिर' का राब्ता जिससे भी है इख़लाक़ से है
मैं बुज़ुर्गो से मिली तर्बीयत से आश्नाई बनाता हूँ।
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