अमीरो के हाथों की कठपुतली, और सियासतदानों के हाथों का नाखून हैं ,
ये देश का अंधा कानून हैं।
किसी ने बरसो कैद में गुजार दिये बेगुनाही में,
कोई जेल भी ना गया करके कत्ल किसी की सरपराही में।
किसी को छोटे जुर्म की सज़ा ज़िन्दगी से बड़ी हैं
किसी की जुर्म की दास्तान पर भी दूर हथकड़ी हैं।
यहां इंसाफ के नाम पर सिर्फ ज़िन्दगी मरती हैं,
अदालत में तारीख़ के बाद बस तारीख़ बदलती हैं।
किसी को गवाह़ नहीं मिलता कत्ल के बयानो में
कोई झूठी गवाही देता है रखकर हाथ गीता कुरआनो पे।
अदालत ही हर मज़लूम की आखिरी उम्मीद और सुकून है,
मगर इंसाफ यहां भी नहीं मिलता, ये अंधा कानून हैं।
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