कड़ी निंदा
टूटी है नींद, ना भजन ना अजान से।
छुटी है रूह, उस शहीद-ए-जवान से।
रिश्ता नहीं उसका दलित, मुसलमान से।
खतरा नहीं धर्म को, उसकेे अपमान से।
खामोस है जहान, सो रहा है शान से।
भारत माँ रो रही है, बेटा गया जान से।
उतरा नहीं सड़क पे, कोई अभिमान से।
लाशे भर आ रही है, जंग के मैदान से।
मांगू इंसाफ क्या, सरकार की दुकान से।
बस 'निंदा' ही मिला है उनके बयान से।
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