वो अक्सर पूछती है
मिलते नही हम तुमको फिर बोलो क्या होता?
किसके दिल में रहते तुम, कौन तुम्हारा होता?
यह सवाल ज़रा मुश्किल सा लगता है
तुम हो तभी तो महफ़िल सा लगता है
तुम बिन यह लम्हे इतने ख़ास न होते
ख़ुदा से शिकायत होती अगर तुम पास न होते
मुकम्मल मेरे ग़ज़ल के अल्फ़ाज़ न होते
हम राज़ ही रह जाते अगर तुम हमराज़ न होते
तेरे साथ होने से मेरी इबादत हो जाती है
हर एक मुलाकात में मोहब्बत हो जाती है
वकालत तुम्हारी, फ़ैसला तुम्हारा, गवाह भी तुम हो
मेरे हर एक दिल-ए-मर्ज़ की दवा भी तुम हो
देखते देखते ही एक साल गुज़र गया है
जो खाली हिस्सा था मुझमें, तेरे आने से भर गया है
तुम बिन जीने की सोंच के भी डर जाते है
तुम्हारे न होने के सवाल से हम अक्सर मुकर जाते है
पर आज कहता हूँ के
तेरे बिन न कोई और इस दिल को गवारा होता
न हम किसी के होते, न कोई और हमारा होता
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