नीलामी बाक़ी है।
मौत ने चाहा मेरी नज़र खौफ़ में हो
पर उस वक्त मैं भी उसका साथ चाहती थी।
उसे पसन्द ना आयी मेरी ऐसी गुस्ताख़ी
और उसने ज़िंदगी से मेरा सौदा कर दिया।
डर को ना पा कर मुझमें, वो मुझे डरा कर बोला -
" अभी वक़्त नहीं आया है, तुझे परखना बाक़ी है।
अभी तेरी नुमाइश बाक़ी है, तेरी नीलामी बाक़ी है।"
मैं घसीटी गयी दर्द के बाज़ार में
दर्द के दलालों ने कईं हिस्सों में मुझे बेच दिया
मैं थकी नहीं। मैं लड़ती रही
पर उन ख़रीददारों ने रहम न की
मेरे सुकून को बेचैनी ने ख़रीदा
मेरी मुस्कुराहट को तकलीफ़ ने ख़रीदा
मेरी काबिलियत को घमंड ने ख़रीदा
मेरी मेहनत को आलस ने ख़रीदा
मेरे सब्र को गुस्से ने ख़रीदा
मेरी मोहब्बत को नफ़रत ने ख़रीदा
मेरी ख़ुद्दारी को लालच ने ख़रीदा
मेरी वफ़ादारी को फरेब ने ख़रीदा
अब मेरे सारे जज़्बात टुकड़ों में बिक गये थे
ख़रीददार इनके बेहद ज़ालिम निकले
धीरे-धीरे गूंगा होना, बेहरा होना सीख लिया
मैंने भी इंसानियत को निगलना सीख लिया
बंद आँखों से बेरहम बन कर जीना सीख लिया
ज़िंदगी को बेबसी में गिड़गिड़ाते देख लिया
अब वाक़ई मौत से डरना सीख लिया
परख कर सब, मौत दूर से ही मुझे घूरती है
रोज़ मेरी साँसों की खैरियत पूछने आ जाती है
इंतज़ार है उसे, मेरी हिम्मत के बेघर होने का
खौफ़नाक मंजर में 'बेहद' हैवान होने का
अब यहाँ सिर्फ़ मेरी उम्मीद की नीलामी बाक़ी है।(गीतिका चलाल)@geetikachalal04
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