मसअले नये वो हर बार बनाते हैं,
नर्म शाखों को जो तलवार बनाते हैं,
रास्ते कभी जुड़ने न पायें मंजिलों से,
राहों में इस कदर वो दीवार बनाते हैं,
नशों में भरके बारुद, नौजवानों के
भले चंगों को वो बीमार बनाते हैं,
इंसानियत की कीमत क्या उन्हें गुमां,
जिस्मों को जो मण्डी-बाज़ार बनाते हैं।
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