चेहरे को तेरे माहताब लिख रहा हूँ।,
बादलों को तेरा नक़ाब लिख रहा हूँ।
चांद तारों को ख़्वाब लिख रहा हूँ।
ज़िन्दगी को हबाब लिख रहा हूँ।
जब तलक ख़ुदना मुझको बतलाये,
नाम तुम्हारा मैं गुलाब लिख रहा हूँ।
गर ख़ुदा लिख रहा है मेरा हिसाब,
में भी तुम्हारा हिसाब लिख रहा हूँ।
जितना जी चाहे दर्द दे तुम मुझे,
हर दुखन को सवाब लिख रहा हूँ।
मुन्तशिर करके में ख्यालों को,
सब ख़यालों के बाब लिख रहा हूँ।
उनकी आँखों से जो टपकती है,
बस उसी को शराब लिख रहा हूँ।
वोह जो मुद्दत से कर रहे हैँ उसी,
तबसिरे पे किताब लिख रहा हूँ।
अश्क जो ठहरा है उभरके अभी,
में तो उसको सराब लिख रहा हूँ।
मुझको जो देखके झुकाई निगाह,
ताब को मैं आफताब लिख रहा हूँ।
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