QUOTES ON #ILLUSION

#illusion quotes

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5 JUL AT 22:48

कितनी हसीन हैं,
वो महजबीन हैं,
उफ़ क्या नखरे उसके,
आय हाय कितना इतराती हैं!
करवट तो ऐसे बदलती हैं,
के जैसे बदले दुनिया;
वाह क्या मुस्कुराती हैं,
लाजवाब शरमाती हैं।।
पर कमबख्त, बेवफा हैं।।
स्वागत हैं मोक्ष के रास्ते पर आपका,
वह माया हैं, ऐसे ही फसाती हैं।।
परमात्मा की बेहतरीन रचना हैं,
मायाजाल बिछाती हैं।
अगर आप भटकना चाहते हो,
तो आपका हाथ बटाती हैं।।
मुस्कुराती हैं।।
वह माया हैं, ऐसे ही फसाती हैं।।

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4 JUL AT 15:42

There are no soulmates,
nothing can be as big illusion,
but there are some poeple
who’ve passionate hearts
and they find their compere
to love each other, and
carry on their love
what may be the barriers.

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3 JUL AT 2:35

जब वो लौटी...पर अजनबी बनकर..."

(read the caption below )

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2 JUL AT 16:07

अब नहीं चाह किसी मोह की,
ये दिल मिरा वैरागी बन चला है।

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30 JUN AT 20:52

धुंधली लगने लगी हैं जो..
अब सारी तस्वीरें उसके अलावा,..
ये आँखें, ये दिमाग़, ये दिल...
अरे! सब ख़राब कर गया है वो छलावा..

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21 JUN AT 9:59

No matter how deep you go, you can't go beyond illusion.

Illusion is understood functionally in stillness or as a whole in embrace.

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21 JUN AT 0:55

Sochti hoo ki sab baato pe yakeen karoo
Par mera dil is baat ki gawaahi nhi deta

Tum ho bhi nhi ab ki kuch keh paau tumko
Insaan kitna kuch kehta hai sabko
Kyu wo aane wali tabaahi nhi dekhta

Aisa ho hi nhi sakta ki tum kisi ke sath aisa karo
Bas ek hi lafz goonjta hai zehen me mere
Baaki kon kya kehta hai mujjhe sunaayi hi nhi deta

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18 JUN AT 23:42

दृश्य होती स्मृतियाँ

कभी-कभी
आँखें बंद करने से
दृश्य नहीं मिटते-
वे उभरने लगते हैं,
और
स्मृतियाँ
छायाचित्र नहीं,
चलचित्र बन जाती हैं।

एक दुपहरी की धूप-
जिसमें माँ की परछाईं थी
और बर्तनों की खनक-
आज भी उसी कोण पर गिरती है
मेरी बंद आँखों में।

पुराना घर
अब नहीं रहा-
पर उसकी दीवारें
अब भी रात को सपनों में गिरती हैं
और मैं
हर बार नींव पकड़ लेता हूँ।

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18 JUN AT 16:36

महंगाई की आंच में जलते हैं ख़्वाब क्यों,
हर साँस पे लगता है, अब हिसाब क्यों।

बेरोज़गारी की धूप है हर एक गली में,
इतनी डिग्रियाँ लिए फिरते हैं जनाब क्यों?

इमरजेंसी तो बस अमीर की चौखट पे है,
ग़रीब का होता नहीं वक़्त पे इलाज क्यों ?

तालीम की बुनियाद हिल रही है कहीं,
अशिक्षा का बढ़ रहा इतना शबाब क्यों?

सियासत के खेल में गुम हैं ज़रूरतें,
हर वादा बन जाता है इक नक़ाब क्यों?

अंधविश्वास फैल रहा है राजकाज जैसे,
ये अंधे-गूँगे-बहरे यहीं पे बेहिसाब क्यों?

हर चैनल पे हैं मिलते मोतीचूर के लड्डू,
वरना सियासत के तलवों में, इतनी मिठास क्यों?

धरती तो वही है, मगर बदली है फ़िजा,
आख़िर भाईचारा है लगता अब अज़ाब क्यों?

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17 JUN AT 19:52

I notice cars that look like his—
every turn, every red light,
a reminder that memory doesn’t wait for permission.
He’s nowhere, and yet,
everywhere.

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