किताबों से दूरी रही, हजारों मजबूरी रही
जिसने घर को अपने रंग दिये
उसके भविष्य की रंगोली अधूरी रही।
बिखरे समाज में बिखरती रही
बेरंग रिवाज में सिमटती रही
शैतानों में फंसी ,कभी बिगानो में फंसी
स्वाभिमान का शव, लिए सती जलती रही।
रीत धीरे-धीरे रंग बदलती रही
रस्म रिवाज की कसौटी निखरती रही
रंजिश बीते कल से फिजूल थी
वह कभी सूरज ,कभी चांद सी चमकती रही।
-