दिल बेचारा
ये वर्णन कर ही नहीं पाता की
धड़कनों को यूं वेग ना दिया करो,
कभी तीव्र तो कभी शून्य किया न करो।
भला अकेले हम ही थोड़े शामिल थे
चाहत, फिक्र, वफ़ा, दर्द जैसे जज़्बात में,
नजरों ने भी गवाही दी थी और
होठों ने भी तो मुस्कुराया था.
विचारों के उथल पुथल में
सिर्फ हमें ही
कटघरे में न बुलाया करो.।
-