रहता हूं किराये के घर में रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं दफन हो जायेगा ये मेरा शरीर इक दिन फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूं खुद के सहारे मैं कब्रसत्तान तक भी ना जा सकूंगा इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ -unknown
जिंदगी के उदास लम्हों में तेरी याद बहुत आती है मां बिना तेरे यह दुनिया मुझे बहुत सताती है मां अब बिना आंचल के तेरे मुझे नींद कहां आती है मां हर एक चीज तेरी मुझे तेरी याद दिलाती है मां बिन साये के तेरे ये बुलबुल घबराती है मां सुनी ये आंगन बगिया तेरी अंदर बहुत रुलाती है मां बिना कहानी सुनाएं अब कौन मुझे खिलाती है मां सुना पड़ा गलियारा सारा कौन खेल खेलाती है मां अब लौट आ वापस तू तेरी याद बहुत सताती है मां