महिमामंडन, तेरी सूरत का, जितना हो कम होगा, तेरे भीतर है जो मन, उसका कैसे वर्णन होगा? तू है झिलमिल चांद की प्रेरक, तू है दमक दिवाकर की, मद्धम हैं सारी उपमाएं, सब तुझसे कम सुन्दर होगा।
उसकी आंखें देखूं या उसकी रंगत पर इठलाऊं? कैसे कर लूं इक छिन दूरी, कैसे उसको ना चाहूं? जिस पर तन–मन बलिहारी, उससे ही लिपटा जाऊं उसकी दिशा–दशा सब पर, मैं तो मिटता ही जाऊं, उसके रंग पर फबता है, मेरे होठों का चुम्बन यूं, उसके रंग पर निर्भर है मेरी संतति का जीवन ज्यूं।
उम्र तनख्वाह सी खर्च कर दूं मेरी जान तुम पर, तुम महज़ दिल रख लो मेरा, और रूठा न करो; तुम बिन बेतहाशा फिराक तुम्हारी ही होती है, यूं टूट कर मेरी बाहों में, मुझको लूटा न करो..
रून-झुन उसकी करधन की धुन और मेरा दिल उस पर टुन्न, रातें उजली-उजली करती आंखें उसकी हैं टिम-टिम, चाहूं जिसको सुब्ह-ओ-शाम है वो फनकारों का फ़न, मैं हूं इश्क़ के रोग से पागल, है वो मेरे तिब का फ़न..
मेरी पहनाई पायल, आज़ादी से चहकती पायल तुम्हें पहना दूं ग़र - बेबाक उड़ना तुम अपनी आज़ादी की अपने सपनों की उड़ान, तुम्हारी उड़ान और हवा के घर्षण से छनकती रहेगी मेरी पहनाई पायल, ऐसे मेरा इश्क़ तुम्हारे सफ़र की गूंज बनेगा और मैं तुम्हारा हमेशा साथ देने वाला हमसफ़र❤️
सराब सी लुभातीं उसकी आंखें, ख़ुदा का सबाब हैं, वे सुकूं हैं, ग़म के सीने में पड़े खंजर का अज़ाब हैं, बतौर-ए-ख़ास से नावाकिफ वे बेहद ख़ूब लगती हैं, वे आंखें साल भर के मौसमों की लब्बोलुआब हैं..
राहु-केतु जैसी सी होती दुर्दशा अपनी भी, वो न होती, तो मैं भी मस्तिष्क रहित होता; उसके होने से बदल गयी मेरे ग्रहों की चालें, जो न होती तो मैं भी त्रिशंकु सा अटका होता..