देखते ही देखते ज़िन्दगी का एक साल और बीत गया,
एक बार फिर वक़्त मेरी उम्र से जीत गया।
क्या खोया क्या पाया, कभी हिसाब नही लिया खुद से,
जो मिला उसी में खुश रहना भी सिख लिया।
अपने अरमानों को रौंधकर हर कदम बढ़ाया है मैंने,
कभी बना अपने बूते से तो कभी खुद मिट गया।
आँखे ख्वाब देख लेती है हक़ीकत से पहले,
कौन जाने लिखने वाला मुक़द्दर में क्या लिख गया?
देखते ही देखते ज़िन्दगी का एक साल....
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