Mahen Baroth   (✒️ महेन बारोठ)
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मेरी महफ़िल में सबका स्वागत है..!!
Joined 18 June 2018


मेरी महफ़िल में सबका स्वागत है..!!
Joined 18 June 2018
24 MAY 2020 AT 10:05

अब किसे दिखाये!!!
अपने जज़्बातों की स्याही,
यहाँ तो सभी शायर बने फिरते है।
हम एक नज़्म पढ़ते है
तो वो दो सुनने को कहते है।
अजी! शौक़ कहते है
वो अपनी बेतुकबन्दियों को।
और एक हम है जो अपने ही
मिसरों में गलतियां ढूंढते रहते है।

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22 APR 2020 AT 10:41

हर सोच है मुमकिन,
हर ख्वाब है मुमकिन,
तू चाहे तो हर बात है मुमकिन।

थोड़ी सी हिम्मत कर ले,
थोड़ी सी शिद्द्त कर ले,
होती है हर राह की मंजिल,
हर कोशिश हर बार है मुमकिन।

टूट टूट के बिखर रहा जो,
बिखर बिखर के सिमट रहा जो,
उम्मीद नही ये वक़्त है तेरा,
तेरे बस के भी हालात है मुमकिन।

परख सके तो परख ले खुद को,
जानले खुद को समझ ले खुद को,
दुनिया से अनजान नही तू,
तेरी भी पहचान है मुमकिन।
हर सोच है मुमकिन...

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21 APR 2020 AT 17:21

एक सवाल है ज़िन्दगी से...
क़े वक़्त बेवक़्त बदलती क्यों है?
देती है हिम्मत मुश्किलों में,
तो हारने से इतना डरती क्यों है?
जीती है कभी खुलकर,
तो घूट-घूट कर मरती क्यों है?
गुजार लेती है दिन तकलीफ़ों में भी,
तो खुशियों में इतना सँवरती क्यों है?

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18 APR 2020 AT 21:01

कमाल की नज़र है लोगो के पास,
ना जाने कितना दूर देख लेते है।
हम मिलते है मुस्कुराते हुए सबसे,
वो फिर भी मेरी सादगी में गुरुर देख लेते है।

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18 APR 2020 AT 19:50

एक वक्त था जब लोगों के पास
बात करने की फुरसत नही थी।
आज फुरसत सबके पास है,
पर बात करने का वक़्त नही..!!

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13 APR 2020 AT 11:58

कहने को सारी बातें है,
हाँ सब झूठे दिलासे है।
बदलेंगे कभी हालात ये फिर से,
सब तक़दीर के झाँसे है।
कहने को सारी बातें है....!

वक़्त के दिए घावों के आगे
ये दर्द बहुत जरा से है।
ना भरते हैं, ना सूखते हैं,
जो ज़ख्म दिलने तराशे है।
कहने को सारी बातें है....!

तुम चाहें जितना ग़म पिलो
फिर भी चुभती कुछ फांसे है।
जीवन और मौत के झगड़े में,
हर दम उलझी मेरी साँसे है।
कहने को सारी बातें है....!

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10 APR 2020 AT 16:20

हर शहर मरघट हो गया,
हर गली सुनसान हो गई।
मौत बाहर नंगी घूम रही है,
और ज़िन्दगी घरों में कैद हो गई।

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26 MAR 2020 AT 20:45

कितना मजबूर होगा उपरवाला भी
ये तस्वीर देखकर,
रो रहा होगा वो भी एक माँ की बेबसी
और बच्चे की मासूमियत पर...!
😔😔😔

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6 FEB 2020 AT 16:37

टुकड़ों-टुकड़ों में मरने की
इस कदर आदत हो गई है,
क़े अब जीने में
कोई दिक्कत नही होती।

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16 DEC 2019 AT 18:53

तेरी कलम चूमूँ या अल्फ़ाज़ बता,
तेरी लफ़्ज़ों की कारीगरी का
मैं कायल हो गया...!

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