ताब -ए- करिश्मा   (🇮🇳करिश्मा 'ताब')
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Joined 9 July 2019


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मन का आपा खोया,जब जग बिसराय
सुधि सुधि लाये ज़ख्म हरे हुए हाय

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समाज ने दिया
है मगर अब
दर्द मेरा है

उससे उपजे
सवाल भी मेरे
भला वो मुझसे
कैसे आजाद होंगे

कभी भी नहीं
मेरे मरने तक
साथ लड़ेंगे
जूझेंगे मुझसे
कभी इस
दोगले समाज से

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नजदीकी बढ़ाते बढ़ाते दूर हो रहा हूँ
जग में सब्र के अपने इम्तिहान बो रहा हूँ
इधर बेचैनी मेरे दिल की कम नहीं हो रही इधर से उधर मै खाक छानता फिर रहा हूँ

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मिरे पास शोक मनाने का वक़्त नहीं है
जिंदगी जाया करने का वक़्त नहीं है
सुनो!रेज़ा रेज़ा हिज्र समाया है मुझमें
बेजा कयास लगाने का वक़्त नहीं है

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कहानी सुनना किसे अच्छा नहीं लगता
वो सुनाती है कहानी मै सुनता रहता हूँ
जहाँ गहराई अधिक हो मीन उछाल देती है
वृत्ताकार लहरों के बीच वो खो जाती है
मै ठगा सा देखता रह जाता हूँ कहानी मे

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बनते बिगड़ते अक्स को देख रहा नदी के बहाव मे
इक शख्स की नजरों में खुद को तलाश रहा हूँ

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ख़ामोशी की भी अपनी एक आवाज है
सुन सको तो सुनो शोर बहुत है अंदर मेरे
किसकी नफरतों की इतनी सज़ा पाई है
ताउम्र छुपाना है अपनी बेबसी का गम

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साख से झड़ गए जो पात
वो टहनी पर दुबारा नहीं जुड़ते
शब -ए- जीस्त घाव इतने मिले
मरहम मिलना नामुमकिन हुआ

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लोग होते ही हैं जलाने के लिये
मृत्यु से पहले भी मृत्यु के बाद भी

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जिम्मेदारी ना हो कौन बिस्तर से उठता
वक़्त कटता रहता तब उबासियाँ लेने में

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