चीख़ती खामोशी के पीछे छुपा , एक बिलखता सा शोर होता है......
चारों ओर फैले सन्नाटे में घुला ,ये बिखरता हर ओर होता है.....
चाशनी सी आवाज़ , के पीछे का सच्चा चेहरा ,चुप्पी में दबी वो झूठी परछाई सा होता है.....
जो होकर भी नज़रों के सामने कहीं ,नज़रों के पहुँच से दूर होता है.....
कुछ बाते यूँ दबी रहती है दिल में , जिनका चर्चा छाया हर ओर होता है......
अंदर मरी सी रहती है वो जोगन , आँचल थामे कोई और होता है......
कहने को कर देते है उसे यूँ ही बदनाम , कोठों में बसने का कहाँ मोह होता है......
दिख जाते हैं सबको उसके पैरों के वो घूँघरू , नहीं सुनता जो पीछे "माँ - माँ " का शोर होता है....
-