Swati Garg   (Swati Garg)
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Joined 19 December 2019


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29 JUN 2023 AT 7:58

ना समझता किसी को इंसान भी,
कितना गलत है इससे अंजान भी,
धन दौलत की दुनिया में सिमटकर,
फिर रहता है इससे परेशान भी,
खुद को समझता भगवान से ऊपर,
इज्जत भी चाहता उनके बराबर ही,
अपनो से डरकर करता विश्वास पड़ोसियों पर,
फिर चाहता बुरे वक़्त में सहायता अपनो से ही,
अपने अहम में चूर रहकर करता सबका अपमान है,
सब छोटे हैं और झुके मेरे सामने,
हर कोई इसी किस्म का इंसान है,
चाहता है सबसे जी हुज़ूरी और इसी बात का गुमान है,
बस इसीलिए अकेला कहीं ना कहीं हर इंसान है।।

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30 MAY 2023 AT 11:20

ज़िंदगी के सफर में तेरे साथ का ख़्वाब था...







ज़िंदगी के सफर में तेरे साथ का ख़्वाब है...

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24 MAY 2023 AT 22:16

पुरानी बातों की यादें,
पुराने लम्हों की मन में बुनियादे,
कब तक साथ लेकर चले,
क्यूँ ना माज़ी से छुटकारा ले।
उन बातों में जीना,
उन लम्हों में जिंदा रहना,
कब तक ज़िंदगी की डगर ऐसे चले,
क्यूँ ना माज़ी से छुटकारा ले।
उन बातों में बने हसीन पलो की गुदगुदाहट,
उन लम्हों में जिये वक़्त की देने वाली मुस्कुराहट,
गुदगुदाहट मुस्कुराहट के साथ आने वाले दर्द और तड़प,
दर्द और तड़प के साथ आँखों से बहते आँसुओं की गड़गड़ाहट,
कब तक मन इस दबे इस बोझ तले,
क्यूँ ना चलो माज़ी से छुटकारा ले।।

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24 MAY 2023 AT 22:04

दरख्वास्त है बस इतनी रुकसत ना होना,
मोहब्बत को राख बन जाने तक,
कुछ वक़्त अकेला छोड़ देना,
ज़ख़्मो के भर जाने तक...

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21 APR 2023 AT 20:57

कोरा कागज़ जैसा समझते थे खुद को,
जिसमे तुम शब्द लिख रहे थे,
बेरंग जैसी लगती थी ज़िंदगी खुद को,
जिसमे तुम रंग भर रहे थे,
हालाँकि ऐसा था नही,
इश्क़ में चूर थे इसलिए कुछ दिखा नही,
पर यादें इतनी बन गयी कि अब वो भूलता नही,
इसलिए वो बेनाम रिश्ता भी टूटता नही,
अब बातों के लिए भी जरूरत पड़ती है बहानों की,
क्या करें अब आदत पड़ गयी तेरे सहारे की।।

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21 APR 2023 AT 17:54

इश्क़ में ज़िंदगी भी नए- नए खेल है खिलाए,
यूँही नही कोई वस्फ़- ए- मोहब्बत को समझ पाए।।

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21 APR 2023 AT 15:22

वो भी क्या दास्ताँ थी
हमे उनकी ज़रूरत थी और उन्हे हमारी,
पर हम दोनो ही एक दूजे से ख़फ़ा थे...

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21 APR 2023 AT 15:13

ख़्वाब में ख़्वाब था सब टूट गया

( Read Caption)

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21 APR 2023 AT 14:51

तुम थे तो अल्फ़ाज़ में एक अलग खनक थी,
सियाही भी पन्ने पर थिरकती नही थकी थी,
चले गए तो खनक के साथ थिरक भी ले गए,
जो सुकून मिलता था तुम्हारा बखान करने में
वो लिखने में सुकून का मज़ा ले गए,
आज लिखते हैं अपने मन के जज्बात को,
दिल - ओ - दिमाग में चल रहे तूफान को,
पर ना ही उसमे तुम्हारी महक बची है,
और ना ही तुम्हारी मूरत सजी है,
तुम्हारी मूरत की महक ना होना एक सजा है,
ऐसे यूँही लिखने में कहाँ मजा है।।

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21 APR 2023 AT 14:37

सर्द मौसम में सुलगते कोयले जैसे,
तुम्हारी यादें गर्माहट देती हैं,
उसमे उठते धुएँ के जैसे,
आँखों में आँसू की बहार देती हैं,
उसी बीच हवा के झोकें के जैसे,
उसी जगह स्तब्ध कर देती हैं,
जैसे वक़्त के साथ सब राख हो जाता है,
वैसे ही यादों का है सैलाब भी रुक जाता है,
जैसे उन सुलगते कोयलों में कुछ आँच रह जाती है,
वैसे दिल के किसी कोने में आँच तुम्हारी यादों की भी रह जाती है।।

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