Swapnil Tiwari   (Swapnil Tiwari)
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Poet, lyricist, script writer
Joined 31 March 2018


Poet, lyricist, script writer
Joined 31 March 2018
20 MAR 2019 AT 20:07

इश्क़ की इक रंगीन सदा पर बरसे रंग
रंग हो मजनूँ और लैला पर बरसे रंग

कब तक चुनरी पर ही ज़ुल्म हों रंगों के
रंगरेज़ा ! तेरी भी क़बा पर बरसे रंग

खाब भरें तेरी आँखें मेरी आँखों में
एक घटा से एक घटा पर बरसे रंग

इक सतरंगी ख़ुशबू ओढ़ के निकले तू
इस बेरंग उदास हवा पर बरसे रंग

ऐ देवी तेरे रुख़सार पे रंग लगे
जोगी की अलमस्त जटा पर बरसे रंग

मेरे अनासिर ख़ाक न हों बस रंग बनें
और जंगल सहरा दरिया पर बरसे रंग

सूरज अपने पर झटके और सुब्ह उड़े
नींद नहाई इस दुनिया पर बरसे रंग

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19 MAR 2019 AT 20:39

Coffee cup reading ( नज़्म/نظم)

उसे मैसेज तो भेजा है
के कॉफ़ी पर मिलो मुझ से
वो आ जायेगी तो अच्छा
मैं पहले सिर्फ़ दो कॉफ़ी मँगाऊंगा
मैं कैपेचीनो पीता हूँ
वो कैसी कॉफ़ी पीती है
इसका अंदाज़ा तो उसके आने पर होगा…

हमारे पास तो बातें भी कम हैं
सो कॉफ़ी जल्द पी लेंगे।
जो उसके कप में थोडा झाग कॉफ़ी का बचा होगा
मैं उसकी शेप को पढ़ कर उसे फ्यूचर बताउँगा
बताऊँगा उसे मैं
कैसे वो मुझ जैसे इक लड़के की दुनिया को बदल देगी…
(उसे मालूम होगा क्या? के कॉफ़ी कप की रीडिंग का तरीक़ा ये नहीं होता ?)

मैं कैफ़े आ चुका हूँ...
...वो भी रस्ते में कहीं होगी
बहुत से लोग कैफ़े आ के पढ़ते लिखते रहते हैं
मुहम्मद अल्वी की नज़्में तो मैं भी साथ लाया हूँ
ये होगा तो नहीं फिर भी, वो आई ही नहीं तो फिर
इन्हीं लोगों के जैसे मैं भी पढ़ कर वक़्त काटूँगा।

उसे आने में देरी हो रही है
मैं इक कॉफ़ी तो तन्हा पी चुका हूँ
ज़रा सा झाग कप में है जिसे देखो तो लगता है
के इक लड़का अकेला बैठ कर कुछ पढ़ रहा है।

तसल्ली दे रहा हूँ अब मैं ख़ुद को
ये मेरी शाम का फ्यूचर नहीं है
... के कॉफ़ी कप की रीडिंग का तरीक़ा ये नहीं होता…

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2 FEB 2019 AT 17:21

होता ही नहीं चाँद का टैटू नज़रअंदाज़
हम जाती हुई शब की कमर देख रहे हैं

ہوتا ہی نہیں چاند کا ٹیٹو نظرانداز
ہم جاتی ہوئی شب کی کمر دیکھ رہے ہیں

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24 OCT 2020 AT 12:08

तुम्हारी सिम्त से किसने अभी पुकारा मुझे
तुम्हीं थे गर तो पुकारो ज़रा दुबारा मुझे
تمہاری سمت سے کس نے ابھی پکارا مجھے
تمہیں تھے گر تو پکارو ذرا دوبارہ مجھے
न जाने कौन सी ख़्वाहिश अधूरी है इसकी
मैं टूटता हूं तो तकता है ये सितारा मुझे
نہ جانے کون سی خواہش ادھوری ہے اس کی
میں ٹوٹتا ہوں تو تکتا ہے یہ ستارہ مجھے
ये और बात हमारे मआनी एक हैं पर
उसे बनाया गया लफ़्ज़ और इशारा मुझे
یہ اور بات ہمارے معانی ایک ہیں پر
اسے بنایا گیا لفظ اور اشارہ مجھے

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8 JUN 2020 AT 10:51

दिल नहीं लगता क़ैद-ए-इश्क़ में यार
तुम जो करते मदद तो होते फ़रार

रात कटती नहीं है इससे अब
तेज़ करनी पड़ेगी चांद की धार

तुमको सोचा तो कुछ न याद आया
टेक लेते ही गिर गयी दीवार

घर में मिलते नहीं हैं हज़रते-दिल
अब बड़े हो चुके हैं बरख़ुरदार

हाँ नहीं ढूँढ़ता नहीं में मैं
यार महफूज़ है तिरा इनकार

रायगां कर न यूँ हँसी अपनी
इस उदासी में मुझको फूल न मार

अपना साया बनाएंगे उससे
करने निकले हैं तेरी धूप शिकार

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8 APR 2020 AT 12:42

ये दिल हज़रते-इश्क़ की रहबरी से
निकाला गया जिस्म की नौकरी से
یہ دل حضرت عشق کی رہبری سے
نکالا گیا جسم کی نوکری سے
मेरी सब गुनहगार रातें हैं इसमें
निकलते हैं जुगनू मेरी डायरी से
مری سب گنہگار راتیں ہیں اس میں
نکلتے ہیں جگنو مری ڈائری سے
अब इक ख्व़ाब उजरत हो इन रतजगों का
तेरी दीद हो आँखों की सैलरी से
اب اک خواب اجرت ہو ان رتجگوں کا
تیری دید ہو آنکھوں کی سیلری سے
मैं अपने परों को ही करने दूँ बातें
या ख़ुद बढ़ के बातें करूँ उस परी से
میں اپنے پروں کو ہی کرنے دوں باتیں
یہ خود بڑھ کے باتیں کروں اس پر سے
मेरी नींद- नगरी की सूनी ज़मीं पर
तिरा ख़्वाब उतरे उड़नतश्तरी से
میری نیند نگری کی سونی زمیں پر
ترا خواب اترے اڑنطشتری سے
कहानी सुनाएगी साहिल पे आ कर
अलाव न मांगो मगर जलपरी से
کہانی سنائیگی ساحل پہ آ کر
الاؤ نہ مانگو مگر جلپری سے

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9 JAN 2020 AT 19:31

प्रोटेस्ट में शामिल हो रहे तमाम स्टूडेंट्स की नज़्र

इन्हीं की आह से इनकी सुरीली तानों से
बची रहेगी ये दुनिया इन्हीं दीवानों से
انھیں کی آہ سے انکی سریلی تانوں سے
بچی رہیگی یہ دنیا انھیں دیوانوں سے
इसी तरह से सितारा भी बन सकोगे तुम
सवाल करते रहो यूँ ही आसमानों से
اسی طرح سے ستارہ بھی بن سکوگے تم
سوال کرتے رہو یوں ہی آسمانوں سے
हवा का काम तो रफ़्तार बख़्शना था इन्हें
हवा झगडने लगी नन्हे बादबानों से
ہوا کا کام تو رفتار بخشنا تھا انہیں
ہوا جھگڑنے لگی ننھے بادبانوں سے
इन्हें बताओ किताबों में गोलियां नहीं हैं
डरे हुए हैं ये कमबख़्त कुतुबख़ानों से
انہیں بتاؤ کتابوں میں گولیاں نہیں
ڈرے ہوئے ہیں یہ کمبخت کتبخانوں سے
शिकार भी बनो उनका तो उस जगह से, जहाँ
शिकारियों को उतरना पड़े मचानों से
شکار بھی بنو انکا تو اس جگہ سے، جہاں
شکاریوں کو اترنا پڑے مچانوں سے

#InSolidarityWithStudents

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5 DEC 2019 AT 17:14

तो क्या शजर ने अब इक आदमी उगाया है
ये जंगलों की तरफ़ कौन लौट आया है

ये शख़्स कैसे हरा है इसे भी काटो अब
बनों की ओर से ये बात करने आया है

ये जंगलों का हरा रंग... बादशाह ए रंग
धनक हसीन बहुत है मगर रियाया है

तमाम जंगल इन आसेबों से डरे हुए हैं
हरेक पेड़ पर अब आदमी का साया है

शजर- सराए में ही अब ठहर सकेंगे हम
हमारे पास न साया न ही किराया है

हमीं पे धूप उठाने का सारा ज़िम्मा है
हमीं ने रंग बनाने का काम उठाया है

कोई तक़ाज़ा करे, जंगलों से आए कोई
हरेक शख़्स पे क़ुदरत का कुछ बक़ाया है

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26 NOV 2019 AT 16:12

तुम्हारी सिम्त से किसने अभी पुकारा मुझे
तुम्हीं थे गर तो पुकारो ज़रा दुबारा मुझे
تمہاری سمت سے کس نے ابھی پکارا مجھے
تمہیں تھے گر تو پکارو ذرا دوبارہ مجھے
ये और बात हमारे मआनी एक हैं पर
उसे बनाया गया लफ़्ज़ और इशारा मुझे
یہ اور بات ہمارے معانی ایک ہیں پر
اسے بنایا گیا لفظ اور اشارہ مجھے
न जाने कौन सी ख़्वाहिश अधूरी है इसकी
मैं टूटता हूं तो तकता है ये सितारा मुझे
نہ جانے کون سی خواہش ادھوری ہے اس کی
میں ٹوٹتا ہوں تو تکتا ہے یہ ستارہ مجھے
भंवर को देख रहा हूं मैं इस तरह जैसे
बुला रहा हो कोई तीसरा किनारा मुझे
بھنور کو دیکھ رہا ہوں میں اس طرح جیسے
بولا رہا ہو کوئی تیسرا کنارا مجھے
मैं इक थका हुआ काफ़िर हूं, और घड़ी भर को
ख़ुदा से पीठ टिका कर मिला सहारा मुझे
میں اک تھکا ہوا کافر ہوں اور گھڑی بھر کو
خدا سے پیٹھ ٹکا کر ملا سہارا مجھے

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15 NOV 2019 AT 9:09

नदी की लय पे ख़ुद को गा रहा हूँ
मैं गहरे और गहरे जा रहा हूँ
ندی کی لے پہ خود کو گا رہا ہوں
میں گہرے اور گہرے جا رہا ہوں
वो सुर में सुर मिलाना चाहती है
मैं अपनी धुन बदलता जा रहा हूं
وہ سٌر میں سٌر ملانا چاہتی ہے
میں اپنی دُھن بدلتا جا رہا ہوں
चुरा लो चाँद तुम उस सिम्त छुप कर
मैं शब को इस तरफ़ उलझा रहा हूँ
چرا لو چاند تم اس سمت چھپ کر
میں شب کو اس طرف الجھا رہا ہوں
यही मौक़ा है ख़ारिज कर दूँ ख़ुद को
मैं अपने आप को दोहरा रहा हूँ
یہی موقع ہے خارج کر دوں خود کو
میں اپنے آپ کو دوہرا رہا ہوں

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