Sushma sagar   (SUSHMA SAGAR...✍️)
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Joined 19 February 2020


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Joined 19 February 2020
41 MINUTES AGO

जानते हो‌ शिव...।

इतिहास... सदैव ,
विजयी व्यक्ति लिखता है...

हारे हुए लोगों ने
इसे कभी न लिखा,
न उनके द्वारा इसे
कभी लिखवाया गया।

परंतु प्रेम की सबसे खूबसूरत
कविताएं ...

प्रेम में हारे हुए
प्रेमियों ने‌ लिखी हैं।।

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AN HOUR AGO

मिट्टी...।

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10 HOURS AGO

इक दर्द है तू मीठा सा, तू बेचैन सा इक सुकून है!
ऐ इश्क तुझे लिखे ख़त का,ये क्या ख़ूब मजमून है!!

है क़यामत,तू कुफ्र है,फिरभी दिल कहे,तेरा शुक्र है!
तुझे अर्के-ज़िंदगी कहूं, मेरी आशिकी का जुनून है!!

तेरे ज़माल के आगे फीकी, दुनियां की सब दौलतें।
बोसीदा गुलाबों में पल रहा इक शाद - पिरसून है।।

जो‌ लिपट गया बदन से ,बु'ओं को मलाल यूं रहा।
मुझसा न कोई ख़्वाब महका, तुझसा न क़लमून है।।

तेरी फ़िक्र बोले जुबां पर,फिरे ज़िक्र जहनो-जी में।
मेरी इबादतों की स्याही कहे तू कितना जू-फ़नून है।।

ऐ क़ासिदे-सबा , ख़ाली तखल्लुस 'सागर'भेज दे।
लिखके भी बेचैनियां औ, बिन-लिखे पुर-सुकून है।।

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2 MAY AT 21:14

अपने ही आपसे बेवज़ह डरने लगा हूं आजकल!
अगरचे,ज़मानेकी बड़ी फ़िक्र करता हूं आजकल!!

तुझसे व़ैर है न‌ फ़लांने से ही रखता हूं दुश्मनी!
मानिंदे-पीर अपनी गली से गुज़रता हूं आजकल!!

ऐब़ मेरे सब सिफ़त किए हैं इश्क़ ने तेरे!
लड़ता हूं न किसी बात पे बिफरता हूं आजकल!!

जानता तो हूं बख़ूबी,हरेक बात के मायने मग़र!
'सागर'ज़ुबां होती तख्तियों से डरताहूं आजकल!!

कोई कह रहा था कल कि बड़ा संत आदमी हूं!
सूरत-ए-इस हाल सूलियों से डरता हूं आजकल!!

बड़ी चोट खाई है तेरी हसरत-ए-दीद ने जानां!
तू है रुबरू,अब घरसे कम निकलता हूं आजकल!!

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1 MAY AT 14:00

भटक गए जो पथिक राह वे लक्ष्य न साध सके!
साहस की परिभाषा को न कर चरितार्थ सके!!

लक्ष्य कहता है तुम बनो धनुर्धर,‌ अर्जुन का तीर!
मछली की आंखकी दूरी'साधो मुझे'पुकार कहे!!

साहस के हथकरघे पर बुनती हैं उम्मीदें ख़्वाब!
ख़्वाब जगाएं रोज़, जो कर आंखे न पार सके!!

चलने से पहले हथियार डाल दे वह वीर नहीं है!
साहस के बलबूते पर अभिमन्यु की जयकार रहे!!

शेर के मुंह न आए निवाले न मिटे राह की दूरी!
बैठे अंधेरों में वे,रोशनिया न नभ से उतार सके!!

उद्धम कहता तुम चलो, दे देंगे राह दरिया पर्वत!
लक्ष्य कहता है बिन साहस न कर्म-व्यापार बढ़े!!

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1 MAY AT 9:39

ले हाथों में कुदाल, जब कामगार चलता है!
गौरव से दीप्त मुख, ज्योति सम बलता है!!

है देह उसकी पुष्प थाल, हौसले ,घृत समान!
दस- दिगों से, हवन का शोर सा चलता है!!

धम-धम करती धमक, तासों का देती भेद!
हर-हर-देव-कर्मठ, जिव्हा पर मचलता है!!

बंध्या धरती हर्षाए, सभ्यताएं दें‌ आसीष!
रूआं रूआं मेहनत का जब धूल सनता है!!

रैदास की कठौती में उतर आती है मां गंगा!
कर्म से ही 'सागर' पुन्य -कमल खिलता है!!

(संपूर्ण रचना अनुशीर्षक में)

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30 APR AT 20:42

मुस्कुरा कर आप देखा आईने कीजे।
शहर भर के जब-जब मुआ'ने कीजे!!

तौहीन-ए-इश्क है वादों से मुकर जाना!
ज़रा सोच कर वा'यदे लुभा'ने कीजे!!

मैं ओढ़ रहा हूं ख़ामुशी तेरे मिज़ाज पे!
तरफ़दारी-ए-यार यूं भी सामने‌ कीजे!!

लहजों को समझिए बात से पहले!
हर बात के फिर 'सागर' मायने कीजे!!

हर आंख से दर्द झांके,हर शख़्स तन्हा!
अब इस दर्द से क्या 'जी' बेगाने‌ कीजे!!

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30 APR AT 20:24

तुम आईं तो‌ , अच्छा लगा।
जीवन का हर रंग सच्चा लगा।।

(रचना अनुशीर्षक में)

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30 APR AT 20:06

जीवन की इस दौड़ में ख़ुद को न भूल जाना तुम।
ज़रा देर को हसीं फ़ुरसतें निकाल कर मुस्कुराना तुम!!

अपने- पराए, सब ही तो‌ भाग रहे हैं बे-मक़सद यहां!
ज़ख़्मी किसी ख़्वाहिश पर,रूककर, मरहम लगाना तुम!!

चलने से पहले परख लीजिए तमाम सफ़र के मुश्किलात!
तवील- ओ- मुख़्तसर, फिर सब रास्ते आजमाना तुम!!

है दौर आजमाइशों का, मुक़ाबला मैं और‌ मंज़िलों का!
मुकाम की होड़ में मग़र न कोई उठा कदम गिराना तुम!!

साथ हैं अपने‌ तो है‌ हर -राह आसां, हर- राह मुकाम हैं!
जीवन की दौड़ में 'सागर'रानाई-ए-राह न भूल जाना तुम!!

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30 APR AT 11:40

शुक्रिया करना सीखिए,शुक्रिया कहना सीखिए।
ज़िंदगी मुबारक है, बेवजह खुश रहना सीखिए।।

बात अच्छी की बुरी, लौट कर आती ज़रूर है।
मन इबादती रखिए, इब़ादतों में रहना सीखिए।।

मुस्कुराकर देखिए आईने, बलाएं सहम जायेंगी।
प्रार्थनाओं में रहिए, प्रार्थनाएं कहना सीखिए।।

बात होती नहीं सदा मन‌ की,'सागर' जान लो।
जी के अम्नो-सुकूं के लिए सहना सीखिए।।

दिन महक जाएगा, फितरतें मोंगरा ग़र हुई।
तरहा- बू-ए-केवड़ा-ओ-गुलाब़ बहना सीखिए।।

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