इक दर्द है तू मीठा सा, तू बेचैन सा इक सुकून है!
ऐ इश्क तुझे लिखे ख़त का,ये क्या ख़ूब मजमून है!!
है क़यामत,तू कुफ्र है,फिरभी दिल कहे,तेरा शुक्र है!
तुझे अर्के-ज़िंदगी कहूं, मेरी आशिकी का जुनून है!!
तेरे ज़माल के आगे फीकी, दुनियां की सब दौलतें।
बोसीदा गुलाबों में पल रहा इक शाद - पिरसून है।।
जो लिपट गया बदन से ,बु'ओं को मलाल यूं रहा।
मुझसा न कोई ख़्वाब महका, तुझसा न क़लमून है।।
तेरी फ़िक्र बोले जुबां पर,फिरे ज़िक्र जहनो-जी में।
मेरी इबादतों की स्याही कहे तू कितना जू-फ़नून है।।
ऐ क़ासिदे-सबा , ख़ाली तखल्लुस 'सागर'भेज दे।
लिखके भी बेचैनियां औ, बिन-लिखे पुर-सुकून है।।
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