नहीं है कोई अपना,, ना ही किसी को वक़्त है..
हैं रिश्ते सारे झूठे,, बस धोखा और छल है,,,
निज स्वार्थ के लिए बस,, हैं वो हमसे मिलते,,
कहेंगे मै हूं सच्चा,, पर हैं वो सबके जैसे..
रिश्ते वो हैं बनाते कुछ इश्क़ दोस्ती के,,
बस करते हैं छलावा और फरेब सबके जैसे।।
गर रहना हो ख़ुशी से, तुम बच के इनसे रहना,,
पाखंडी है ये दुनिया,, हैं पहने सब मुखौटे..
मां_बाप के अलावे,,कोई नहीं है करता,,
पसंद तेरी खुशियां,, तेरी उचाइयों को..
हैं मतलबी यहां सब,, बस उनका प्रेम निश्छल,,
ना कोई आस_पास उनके,, ना ही उनके जैसा,,
ये ज़िन्दगी तुम्हारी,, तुम चलाओ चाहे जैसे,,
पर याद तुम ये रखना,, कोई नहीं है अपना।।
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